शनिवार, 11 दिसंबर 2010

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के बीच जूतमपैजार :न्यायायिक व्यवस्था पर उठे सवाल



इलाहाबाद हाई कोर्ट में भ्रष्‍टाचार को लेकर की गई टिप्‍पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने और करारा जवाब दिया है। पहले की गई टिप्‍पणी पर कायम रहते हुए शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की याचिका खारिज कर दी है। गौरतलब है कि २६ नवंबर, २०१० को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में वक्फ की एक ज़मीन के मामले में सुनवाई के दौरान कहा था कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में कुछ गड़बड़ है और वहां 'अंकल जज' की समस्या और गंभीर हुई है, जिसे रोका जाना जरूरी है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मार्कंडेय काटजू और जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस प्रार्थना पत्र को नामंजूर कर दिया जिसमें सुप्रीम कोर्ट से अपनी टिप्पणी वापस लेने को कहा गया था।


सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान शुक्रवार कहा है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में कुछ शानदार और कुछ अच्छे जज भी हैं। जस्टिस काटजू और जस्टिस मिश्रा की बेंच ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से मामले की पैरवी कर रहे वकील पी.पी. राव की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि यह समय सिर्फ प्रतिक्रिया जाहिर करने का नहीं है बल्कि अपने अंदर झांकने का भी है। वकील राव बार-बार यह कह रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट की सफाई इस मामले में पर्याप्त नहीं होगी।

जस्टिस काटजू ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'आप यह सब मत बताइए। मैं और मेरा परिवार पिछले १०० सालों से इलाहाबाद हाई कोर्ट से जुड़ा हुआ है। लोग जानते हैं कि कौन भ्रष्ट है और कौन ईमानदार। इसलिए आप यह सब मत बताइए।' जस्टिस काटजू ने आगे कहा, 'कल को अगर मार्कंडेय काटजू घूस लेना शुरू कर दें तो सारा देश यह जान जाएगा। इसलिए आप मुझे मत बताइए कि कौन ईमानदार है और कौन भ्रष्ट।'


पी.पी. राव ने अपनी दलील में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की पहले की गई टिप्पणी से हाई कोर्ट के न्यायतंत्र की छवि धूमिल हुई है। राव ने यह भी कहा कि आम लोग भ्रष्ट और ईमानदार जजों के बारे में फर्क नहीं समझ पाएंगे। इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, 'आम लोगों के बारे में यह सब मत बताइए। वे बहुत समझदार हैं। भारत के लोगों को बेवकूफ मत समझिए।'


इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में दायर याचिका में कहा था, ‘सुप्रीम कोर्ट को हाई कोर्ट संबंधी जो शक्तियां दी गई हैं, वे सिर्फ अपील से संबंधित हैं। शीर्ष अदालत को हाई कोर्ट पर नजर रखने संबंधी अधिकार नहीं हैं।हाई कोर्ट की पूर्ण बेंच के फैसले के बाद वहां के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से यह याचिका दायर की गई थी।


क्या थी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

२६ नवंबर को एक मामले की सुनवाई के दौरान अंग्रेजी के मशहूर साहित्यकार शेक्सपियर के नाटक 'हेमलेट' में कहे गए वाक्य 'डेनमार्क में कुछ तो गड़बड़ है' का जिक्र करते हुए जस्टिस मार्कंडेय काटजू और ज्ञान सुधा मिश्रा की बेंच ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के बारे में भी यही बात कही जा सकती है कि यहां कुछ तो गड़बड़ है। कोर्ट ने आगे टिप्पणी की, 'कुछ जजों (इलाहाबाद हाई कोर्ट के) के परिवार के सदस्य और नजदीकी रिश्तेदार वहीं पर वकालत कर रहे हैं और वकालत शुरू करने के कुछ ही सालों में जजों के बेटे और रिश्तेदार वकील करोड़पति बन जाते हैं। उनके पास बड़ा बैंक बैलेंस, लग्जरी कार, बंगला हो जाता है वे विलासितापूर्ण जीवन जीने लगते हैं। हमें खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के कुछ जजों की निष्ठा पर सवाल खड़े हो रहे हैं और हमें उसकी शिकायतें मिल रही हैं।' बेंच ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से 'घर को साफ करने' के लिए कड़े कदम उठाने की गुजारिश करते हुए ऐसे जजों का तबादला करने का उपाय अपनाने का सुझाव दिया जिन्हें 'सुधारा' नहीं जा सकता है।

41 लाख मामले विचाराधीन और २८५ पद खाली

देश में २१ हाई कोर्ट हैं जहां जजों की कुल तय संख्या ८९५ है। लेकिन करीब एक-तिहाई यानी २८५ जजों के पद खाली पड़े हैं। इस साल ३१ मार्च तक देश के सभी हाई कोर्टों में करीब ४१ लाख मामले विचाराधीन थे। इलाहाबाद हाई कोर्ट देश का सबसे बड़ा हाई कोर्ट माना जाता है।

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